Gunjan Kamal

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हमारी भाषा हिंदी

" हिंदी    में    हैं    प्राण    सुर     के
  इसमें     हैं    गीता      का     ज्ञान
  इसको      गाकर    नाची      मीरा
  इसमें     बसते      हैं       घनश्याम "

हिंदी के बारे में किसी ने क्या खूब कहा है ना ! प्राण सुर के , गीता का ज्ञान , नाची मीरा और बसते है घनश्याम । हमारी हिंदी है ही ऐसी जिसमें सभी भावों का समागम देखने को मिलता हैं । लगभग  हम सभी जानते है कि  हमारे देश भारत  में प्रतिवर्ष १४  सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है । यह दिन  ऐसा  होता है  जब हिंदी नही  बोलने वाले लोग भी हिंदी को थोड़ा - बहुत याद जरूर  कर लेते हैं । सन १९१८ में साहित्य सम्मेलन में राष्ट्रपिता  महात्मा गांधी ने  हिंदी  को जनमानस की भाषा कहा था और इसे देश की राष्ट्रभाषा  बनाने  पर भी जोर दिया था । स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद  हजारी प्रसाद द्विवेदी , काका कालेलकर , सेठ गोविंददास , व्यौहार राजेंद्र सिंह जैसे और भी हमारे देश के  कई साहित्यकारों ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की मांग की और इसके लिए सबने मिलकर  अथक प्रयास भी  किए  लेकिन हिंदी को  राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं मिला । हाॅं इनके  अथक  प्रयासों के परिणामस्वरूप  हिंदी के साहित्यकार व्यौहार राजेन्द्र सिंह के  50 वें  जन्मदिन के दिन यानी १४ सितंबर १९४९ को  इसे राजभाषा अवश्य  घोषित कर दिया गया । गैर हिंदी राज्यों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया इस कारण उन राज्यों में अंग्रेजी को हिंदी की जगह दे दी गई । विश्व में तीसरी सबसे अधिक बोलनी वाली भाषा हिंदी है । विश्व के ५५ करोड़ लोग इसे समझते हैं और भारत में ४५ करोड़ लोगों के बातचीत का जरिया हिंदी भाषा ही हैं लेकिन आज तक हिंदी को वह मान-सम्मान और महत्व  नहीं दिया गया  जिसकी हकदार यह थी ।

हिंदी के महत्व को बढ़ाने और अंग्रेजी भाषा की तरफ अधिकांश भारतीयों का झुकाव देखते  हुए हिंदी दिवस  प्रतिवर्ष १४ सितंबर को मनाने का फैसला लिया गया और साथ ही हिंदी भाषा को सम्मान देने के लिए आज के दिन दिल्ली में हमारे देश के  राष्ट्रपति हिंदी भाषा में अतुल्नीय योगदान के लिए देश के नागरिकों  को राजभाषा पुरस्कार से  सम्मानित भी करते हैं। सभी स्कूल - काॅलेज में हिन्दी दिवस को पूरे एक हफ्ते तक सेलिब्रेट किया जाता है जिसे हिन्दी पखवाड़ा के नाम से जाना जाता हैं । इस हिंदी पखवाड़े में बच्चों के बीच  हिंदी सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता , हिंदी श्रुत लेखन प्रतियोगिता , निबंध  लेख प्रतियोगिता , चित्रकारी प्रतियोगिता आदि आयोजित की जाती है और इन प्रतियोगिताओं में विजयी हुए विजेताओं में   पुरस्कार राशि का भी वितरण किया जाता हैं । ऐसा सरकारी संस्थाओं में भी  किया जाता हैं ताकि हिंदी को प्रोत्साहन दिया जा सका लेकिन क्या हमारे और आपके मन में यह सवाल नहीं उठता कि ४५ करोड़ लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा को अभी भी प्रोत्साहन की जरूरत पड़ती हैं ?

हिंदी की दुर्दशा :-   दुर्भाग्य है कि आम जनमानस की प्रिय भाषा होने के बाद भी हिंदी आज भी प्रोत्साहन की मोहताज या यूं कहें कि उस  सम्मान की मोहताज है जिसकी वह हकदार है । यह उसी तरीके से है जैसे एक माॅं   सम्मान मिलने की आशा भरी निगाहों से अपने पुत्र की तरफ  टकटकी लगाए रहती है ।  हिंदी के इस दुर्दशा की जिम्मेवार कोई गैर हिंदी भाषी नहीं है बल्कि हिंदी भाषी स्वयं ही है ‌  इसमें कई तो हिंदी के तथाकथित प्रकांड विद्वान भी रहे हैं जिन्होंने हमारी सरल मधुर हिंदी भाषा को अपनी विद्वता सिद्ध करने के लिए जटिल बना दिया।

परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है। प्रकृति और समय के साथ-साथ मनुष्य को भी अपने रहन-सहन और भाषा शैली में परिवर्तन को स्वीकारना पड़ा है । हिंदी का दुर्भाग्य यह  भी रहा है कि हिंदी की उंगली को पकड़कर हम अंग्रेजी की गोद में जा बैठते हैं और फिर उसी उंगली को नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं । कुछ ऐसा ही हाल हमारे देश के हिंदी का भी है  हालांकि विगत कुछ वर्षों में हिंदी के विकास के लिए कुछ सुखद संकेत भी प्राप्त हुए हैं जैसे कि मीडिया के क्षेत्र में हिंदी के समाचार पत्रों का ही प्रभाव है ।  इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में सबसे ज्यादा हिंदी के चैनलों को ही देखा जाता है । विगत कुछ वर्षों में गैर हिंदी भाषी क्षेत्र जैसे  कि तमिलनाडु , केरल , आंध्र प्रदेश और  पूर्वोत्तर के राज्यों में पश्चिम बंगाल , त्रिपुरा , मणिपुर मिजोरम के युवा भी हिंदी की  तरफ काफी आकर्षित हुए हैं और हिंदी को बोलने और इसके माध्यम से जन जागरण करने में अपना योगदान दे रहे हैं।

" हिंदी    है    जन-जन   की   भाषा
   इसे   अपने    आप    पनपने   दो
   एक    बार     फिर      हिंदी    की
    जय - जयघोष   हो   जाने     दो "

किसी कवि द्वारा लिखित इन पंक्तियों के साथ मैं अपनी लेखनी को विराम देती हूॅं और उम्मीद करती हूॅं कि किसी  भी भारतीय को  हिंदी बोलने के क्रम में  शर्म की अनुभूति ना हों  अपितु उसके दिल में हिंदी के लिए इतना मान-सम्मान हों कि हमारी भाषा हिंदी  बोलते हुए उसे गर्व की अनुभूति हो ।

                                                धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻

" गुॅंजन कमल " 💗💞💓

१४/०९/२०२२


# दैनिक प्रतियोगिता हेतु 


# लेखनी 

# लेखनी लेख 

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9 Comments

Palak chopra

15-Sep-2022 09:40 PM

Achha likha hai aapne 🌺

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नंदिता राय

15-Sep-2022 07:04 PM

शानदार

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Reena yadav

15-Sep-2022 09:36 AM

👍👍

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